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रहस्यमाई चश्मा भाग - 54




ऐसी स्थिति में जब सिंद्धान्त को अपनी वास्तविकता का यकीन होगा तब वह चौधरी साम्राज्य का विभीषण बन उसका समूल नाश कर स्वंय ही साम्राज्य कि बागडोर संभालेगा लेकिन नत्थू कि साजिस पूर्ण योजना को कैसे उसके भविष्य का सर्वोच्च शिखर एव उद्देश्य बनाया जाय प्रश्न यही था जिसका उत्तर भी नत्थू ने कर्दब को समझा रखा था उसने कर्दब को बताया था कि किसी तरह सिंद्धान्त को सुयश का प्रतिद्वंद्वी एव प्रतिपार्थी बना दो फिर आग में घी डालते रहो और हाथ सकते रहो ।कर्दब अपने उस्ताद के मिशन पर कार्य कर रहा था वह मजदूरों में नित्य नए नए भवनाओ को भड़काता और सिंद्धान्त के भावनाओं को उकेरने कि कोशिश करता उसमें जख्मो के तीर छोड़ता शुरू में तो सिंद्धान्त कर्दब कि बातों पर बहुत गमभ्भीर नही था लेकिन कब तक वह कर्दब कि बातों पर ध्यान नही देता उसने कर्दब की बातों पर ध्यान देना शुरू किया एक दिन कर्दब इमिरीतिया से मिला जिसके विषय मे नत्थू ने ही उसे बताया था इमिरीतिया डोमिन थी जिसने दरभंगा में सिंद्धान्त के जन्म के समय प्रसव पीड़ा एव जीवन मृत्यु से झुझती नत्थू कि पत्नी कि मदद प्रसव काल मे किया था उंसे यह भी मालूम था कि सिंद्धान्त को मंगलम चौधरी ने ही पाला है जब नत्थू पत्नी के जीवन बचाने के लिए प्रसव पीड़ा से कराहती नत्थू पत्नी के साथ दरभंगा पहुंचा उस वक्त ब्रह्म मुहूर्त कि बेला थी,,,,

 सब कुछ शांत उस समय भी बहुत कम लोग जागते दरभंगा भी वर्तमान की तरह बहुत विकसित नही था शहर कस्बा बहुत छोटा था कस्बे से बाहर एव अस्पताल के बीच सुनसान जगह थी इमिरीतिया जब शौच के लिए निकली तभी उसने नत्थु की पत्नी कि कराहमे कि आवाज सुनी जो नत्थू से कह रही थी कि अब मैं नही बचूंगी अगर मेरा बच्चा बच गया तो इसे एक अच्छी परिवरिश देना अपने तरह चोर उचक्का एव समाज का दुश्मन मत बनाना इमिरीतिया ने जब यह सुना तब वह शौच के उपरांत नत्थू के पास पहुंची वह देखकर दंग रह गयी कि नत्थू की पत्नी की अंतिम सांसें चल रही थी और पेट का बच्चा नाल में फंसा अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहा था,,,,

इमिरीतिया अनुभवी दाई भी थी उसने नवजात को तो किसी तरह बचा लिया लेकिन जच्चा को बचा पाना उसके लिए असम्भव था उंसे तब बहुत आश्चर्य हुआ जब नत्थू ने मृत पत्नी को घसीटते हुए दूर एल झाड़ी के पास छोड़ कर नवजात को लेकर कही अज्ञात स्थान की तरफ बढ़ने लगा इमिरीतिया ने नत्थू का पीछा किया और देखा कि नत्थू ने मंगलम चौधरी के सुबह आने जाने वाले रास्ते मे नवजात को छोड़ कर लौटने लगा ज्यो ही वह लौटने लगा उसने इमिरीतिया को देखा शातिर तो वह था ही उसने इमिरीतिया का झोटा पकड़ते हुए दूर तक ले गया और गले पर कटार रखा था बोला तुमने कभी भी मुहँ खोला तो समझो दुनियां से गयी इमिरीतिया को समझते देर नही लगी कि वह किसी दुष्ट के हाथों नेकी करने के चक्कर मे फंस गई है वह हाथ जोड़ते हुए मुहं कभी ना खोलने का वचन दिया फिर नत्थू उंसे वही छोड़ा जहाँ उसकी पत्नी ने अंतिम सांस ली थी और बोला देख जो आदमी अपनी घरवाली को चील गिद्धों के हवाले कर सकता है वह कुछ भी कर सकता है और वह चला गया दो तीन दिन बाद पुलिस को लावारिस लास कि जानकारी मिली जो पहचान में ही नही आ रही थी,,,,

सामान्य कार्यवाही के बाद पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी पूर्ण कर ली ।इमिरीतिया का मर्द जग्गू मंगलम चौधरी के मिल का मुलाजिम जो मजदूरों में सम्मिलित था जग्गू को मंगलम चौधरी के कहने पर मिल में नौकरी मिली थी ।कर्दब ने जग्गू को ही मजदूरों के स्वर के रूप में तैयार करना शुरू किया और वह जब भी सिंद्धान्त से मिलने जाता जग्गू को साथ अवश्य रखता ।श्यामचरण झा और विद्यालय निर्माण समिति एव मंदिर निर्माण समिति के लोग सुयश के स्वागत उत्सव से लौट कर निर्माण कार्यो को अंतिम रूप देने में जुट गए सुयश निर्माण कार्यो कि देख रेख चौधरी साहब कि तरफ़ से देख रहा था,,,

 सुयश ने डॉ रणदीप झा के अस्पताल के जीर्णोद्धार का जिम्मा भी सँभाल रखा था कुल मिलाकर कर चौधरी साहब कि जिम्मेदारियों को सुयश एव मिलो की जिम्मेदारियों को सिंद्धान्त ही देख रहा था ।शुभा को नींद में गए लगभग दस दिन बीत चुके थे अब भी वह सिर्फ सुयश और विराज ही बड़बड़ाती कोई लक्षण उसके जागने के नही दिख रहे थे आदिवासी समाज चन्दर के नेतृत्व में हाल चाल शुभा का अवश्य लेता लेकिन सब वेवश विवश सिर्फ समय का इंतजार ही कर सकते थे इसके अलावा कोई रास्ता था ही नही भोजन न करने के कारण शुभा का स्वस्थ निरंतर गिरता जा रहा था एका एक दो सप्ताह बाद शुभा चिल्लाते हुए नीद से जागी बचाओ बचाओ नही तो मेरे भाईयों संकल्प और संवर्धन को मार डालेंगे सर्वानद गिरी और संत समाज खुशी से शुभा के पास गया लेकिन शुभा को अपना पिछला जीवन विल्कुन याद ही नही था उसकी यादाश्त जा चुकी थी,,,


वह सिर्फ गुम सुम पत्थर कि मूरत जैसी बन चुकी थी संत समाज और आदिवासी समाज दोनों ने मिलकर विराज और सुयश को उसके स्मरण में लाने की बहुत कोशिश किया किंतु कोई फायदा नही हुआ समस्या पहले से और भी जटिल हो चुकी थी संत समाज शुभा नारी सन्तो के बीच मे रहती अकेली फिर भी वह सीता की तरह रहती लेकिन उसके भविष्य को लेकर संत समाज बहुत चिंतित था तो आदिवासी समाज कि समझ मे भी कुछ नही आ रहा था सभी एक बार पुनः शुभा के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते लेकिन वन प्रदेश में उन्हें कोई रास्ता नही सूझता ।

 मंगलम चौधरी जब भी अकेले में होते शुभा के ख्यालों में खो जाते और शुभा के साथ बिताए पल प्रहरो को याद करते जैसे कि उनके जीवन कि नीति उनकी प्रतिष्ठा बैभव साम्राज्य ना होकर सिर्फ शुभा तक सिमट चुकी हो जिम्मेदारी तो सुयश और सिंद्धान्त संभाल ही रहे थे मंगलम चौधरी बैठे बैठे अपने अतीत में खो गए जब शुभा से उनकी मुलाकात तब हुई थी जब वह बटवारे से पूर्व कुछ कार्य से पूर्वी पाकिस्तान गए थे और रुके भी यशोवर्धन के अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में तब यशोधरा ने उनसे संकेतो में ही कहा था बेटा मंगलम हम लोग चाहते है कि तुम्हारा और शुभा का विवाह जितनी शीघ्र सम्भव हो हो जाये तो अच्छा होगा क्योकि बदमामी का दाग हम लोंगो के लिए मौत से कम नही होगा मंगलम ने कहा था कि आप लोग विल्कुल चिंतित ना हो हम पिता जी से कह कर विवाह का मुहूर्त सुनिश्चित करवाते है,,,,






जारी है



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